हर पल गुज़रता गया, इंतज़ार में तेरे
ख्वाब था या हकीकत, जो अब तक याद है मुझे
कैसे दिन गुज़र गए, शायद उम्मीद थी कहीं
दस्तक देगा कोई, दबा अरमान था कहीं
जितना भुलाना चाहा,उतना गहरा उतर गया
जो अजनबी सा था, वो वजूद है अभी
ये साँस भी तो अब रुक रुक के आती है
धड़कता तो है दिल, कहीं बेचैन तो नही
इस मासूम मुस्कराहट के पीछे, कहीं ग़म-इ-ख़ास तो नही
सदियों का जो ये बंधन है, दर्दे - राज़ तो नही
मुस्कुरा दे फिर और हाथ बड़ा दे सही
सदियों का ये तो रिश्ता है और मैं भी हूँ वही....
अच्छी रचना, पेंटिंग बहुत सुंदर है...
ReplyDeleteसुन्दर कविता है
ReplyDeleteआशा है जल्दी ही और रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी
sundar rachna !
ReplyDeleteभावनात्मक लिखा है...बहुत बढ़िया
ReplyDeletehttp://merajawab.blogspot.com
सुन्दर कविता है|
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
wah! great expression
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