Saturday, June 26, 2010


क्यों धडकता है दिल और नज़रें बेचैन हैं,
शायद ख्वाब था जो अब तक ,रुबुरु हुआ आज.
पहचान कर भी अनजान बनती रही मैं...दस्तक हुई दिल में , फिर भी दिल से लड़ती रही मैं..
न कुछ कहना चाहती थी , न कुछ सुनना चाहती थी..
बस उस आवाज़ की तलब , जो रूह को दी सुनाई..न कोई रिश्ता इस जनम का ,न कोई पहचान है,
न जाने कैसा एहसास है..जो मैं छू भी न पायी..
न कोई शिकवा..न फरियाद..दर्द कबूल है मुझे,
तोहफा है यह खुदा का..या इस खुदा की खुदाई..

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