Monday, July 5, 2010


टिम- टिम ,टिम-टिम बूँदें बरस रही हैं...
हलकी सी एक हरकत इस दिल में हुई है...
सावन और बादल का रिश्ता समझ रही हूँ...
यादों की राहों पे, यूँ ही निकल पड़ी हूँ...
झूमता बरसता आता है, जब भी ये सावन, आँखों के आगे आता है, फिर वही मंज़र...
सावन से धडकन का रिश्ता समझ रही हूँ...
इस सावन में उस सावन को ढून्ढ रही हूँ...
टप-टप, टप-टप नन्हे पैरों की आवाज़,
अटकेली लेती, उस सावन की वो फुहार...
अंगड़ाई लेती, नटखट सी उसकी पुकार...
उस सावन की भोली फुहार कैसे भूलेगी,
सतरंगी रंगों में लिए बादल का हार,
सावन से इस दिल का रिश्ता समझ रही हूँ...
सतरंगी रंगों में , वो रंग ढून्ढ रही हूँ...

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