Wednesday, July 14, 2010



जन्मों का ये रिश्ता, और खुद को भूल गए...
यादों का सिलसिला, बस चलता ही रहा...
हवाओं ने भी,उस भीनी सी खुशबू को आगोश में लिया...
होठों ने इनकार, आँखों ने इकरार कर दिया...
भीड़ में भी तनहा, रहने का सिलसिला चला...
और बीते हुए लम्हों ने दिल में घर कर लिया...
रात-दिन क्यों पलक झपकती ही नहीं...
धुंधला न हो जाए कहीं यादों का काफिला...
रूह से रूह का रिश्ता, कभी छूटे न हमसफ़र...
अब जो सांस भी लेते हैं,उनकी दुआओं का है असर...

- रोमा

1 comment:

  1. wow beautifully written dear...loved the lines रूह से रूह का रिश्ता, कभी छूटे न हमसफ़र...
    अब जो सांस भी लेते हैं,उनकी दुआओं का है असर...

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