Monday, March 22, 2010

"SAFAR"


"सफ़र"

ज़िन्दगी की डगर पे,दूर बहुत दूर निकल आये हम,
बस चलते रहे हम यूँ ही..जहाँ बड़ते गए कदम,
मंजिल की भी चाह नहीं,बस सफ़र ये चलता रहे,
हमसफ़र हमकदम , बस यूँ ही मिलता रहे.
क्या खोया क्या पाया, अब किसको है गम
ये सफ़र चलता रहे,
कुछ मीठा,कुछ खट्टा कुछ हँसता कुछ नम
कभी मिली ख़ुशी और कभी मिला गम,
कभी धीमी धीमी,मद्धम मद्धम, कभी ज्यादा कभी कम
यूँ चलते उठते सोच रहे थे मेरे ये कदम,
दुनिया बदल गयी और हम रहे न हम.