Thursday, October 7, 2010

" JEENE KA ANDAZ SIKHA GAYE"


क्या कहें कब कैसे कुछ सवाल उठा गए
इन मद्धम सी चलती साँसों को धड़कना सिखा गए
रफ़्तार बहुत थी ज़िन्दगी में, रफ़्तार को ही रास्ता बना गए
वही दिन था, वही रात थी, वही ढलता आसमान था
रोज़ सामान्य सा था जो,उसे मंज़र बना गए
पत्थर जो लगती थी मूरत
इबादत से अपनी खुदा बना गए
शरमाते कंपकपाते होठों से निकली जब दुआ
उस दुआ को अपने सजदे से मोहोब्बत बना गए
इकरार से इंतज़ार का जब सफ़र ये लम्बा चला
बस जान ले ली हमारी और जीने का अंदाज़ सिखा गए?