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थमी रुकी सी हवा , फिर भी पत्ता तो हिलता होगा...
सुनेहरा आसमान , फिर भी बादल बरसता तो होगा...
कहीं न कहीं उन आँखों में प्यार हमने भी देखा होगा...
कभी न कभी , बेक़रार करने वाला करार तो देखा होगा...
यूँ हमने अपनी जान से ज्यादा प्यार न किया होता...
खुद से भी ज्यादा ऐतबार न किया होता...
पूरे जहाँ को रंगीन रंगों में रंग न दिया होता...
हर फूल को गुलाब की खुशबू में भिगो न दिया होता...
अन्दर थे जो जज़्बात , जुबान पर न आ सके...
साथ बैठे वो यूँ ही मुस्कुरा दिए...
शायद इन आँखों का भी मौसम वही था...
थिरकते होठों का जवाब वही था...
जो बात चाहते हुए भी लब तक न आ सकी...
हमारी इक नज़र ने उन्हें ये खबर पहुँच दी...