Friday, July 16, 2010
थमी रुकी सी हवा , फिर भी पत्ता तो हिलता होगा...
सुनेहरा आसमान , फिर भी बादल बरसता तो होगा...
कहीं न कहीं उन आँखों में प्यार हमने भी देखा होगा...
कभी न कभी , बेक़रार करने वाला करार तो देखा होगा...
यूँ हमने अपनी जान से ज्यादा प्यार न किया होता...
खुद से भी ज्यादा ऐतबार न किया होता...
पूरे जहाँ को रंगीन रंगों में रंग न दिया होता...
हर फूल को गुलाब की खुशबू में भिगो न दिया होता...
अन्दर थे जो जज़्बात , जुबान पर न आ सके...
साथ बैठे वो यूँ ही मुस्कुरा दिए...
शायद इन आँखों का भी मौसम वही था...
थिरकते होठों का जवाब वही था...
जो बात चाहते हुए भी लब तक न आ सकी...
हमारी इक नज़र ने उन्हें ये खबर पहुँच दी...
Wednesday, July 14, 2010
जन्मों का ये रिश्ता, और खुद को भूल गए...
यादों का सिलसिला, बस चलता ही रहा...
हवाओं ने भी,उस भीनी सी खुशबू को आगोश में लिया...
होठों ने इनकार, आँखों ने इकरार कर दिया...
भीड़ में भी तनहा, रहने का सिलसिला चला...
और बीते हुए लम्हों ने दिल में घर कर लिया...
रात-दिन क्यों पलक झपकती ही नहीं...
धुंधला न हो जाए कहीं यादों का काफिला...
रूह से रूह का रिश्ता, कभी छूटे न हमसफ़र...
अब जो सांस भी लेते हैं,उनकी दुआओं का है असर...
- रोमा
Monday, July 5, 2010
टिम- टिम ,टिम-टिम बूँदें बरस रही हैं...
हलकी सी एक हरकत इस दिल में हुई है...
सावन और बादल का रिश्ता समझ रही हूँ...
यादों की राहों पे, यूँ ही निकल पड़ी हूँ...
झूमता बरसता आता है, जब भी ये सावन, आँखों के आगे आता है, फिर वही मंज़र...
सावन से धडकन का रिश्ता समझ रही हूँ...
इस सावन में उस सावन को ढून्ढ रही हूँ...
टप-टप, टप-टप नन्हे पैरों की आवाज़,
अटकेली लेती, उस सावन की वो फुहार...
अंगड़ाई लेती, नटखट सी उसकी पुकार...
उस सावन की भोली फुहार कैसे भूलेगी,
सतरंगी रंगों में लिए बादल का हार,
सावन से इस दिल का रिश्ता समझ रही हूँ...
सतरंगी रंगों में , वो रंग ढून्ढ रही हूँ...
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