Thursday, February 4, 2010

"intezar"


" इंतज़ार"

बेकरारी,बेबसी या बस बेखुदी सी है
खुद को खो दिया है या खुद में खो गयी हूँ मैं
धीरे से बहार निकली,फिर सन्नाटा क्यों लगा
या इस बैरागी दिल की धड़कन सुन रही हूँ मैं
ये सहमी सहमी धड़कन भी अब अपनी न लगे
क्यों धड़क रहा है अब भी ये दिल,शायद उम्मीद है उसे
पलों से घंटे,घंटों से दिन,दिनों से महीने ,महीने बने साल
ये करवट बदलते दिन,कभी तो मीलों लम्बे रस्ते,और कभी मात्र क्षण से लगें
कब आएगा आराम इस तड़पते दिल को
जब आएगा विराम इस धडकते दिल को.

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