Sunday, October 16, 2011


"आइना दिल का"

सुना था आंखें हैं आइना दिल का...
फिर राज़े-दिल बयान करना मुश्किल क्यों है...
सोचा था दिखता है जहाँ इनमे...
फिर खामोश लबों का इशारा पड़ पाना मुश्किल क्यों है...
बाखूब खूबी से जस्बात छुपाने की आदत है इन्हें...
फिर भी एक झलक नज़ारे की दे जाती हैं आंखें...
अनकही बातें मगरूर लबों से थिरकती हुई उतरती हैं दिल में...
दिल से आँखों में...
तो फिर पलकों पर इन्हें संभाल पाना मुश्किल क्यों है...
यूँ तो बेजुबान खामोश रहती हैं आंखें...
लेकिन रूह से पड़ पाओ तो सब कहती हैं आंखें...

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