Thursday, June 17, 2010

"manzil"


"मंजिल'


चाहती नहीं थी कहना
ख़ामोशी में खो रही थी
अनचाहे, यूँ ही कुछ लफस निकल गए
अनजानी हरकत ख़ामोशी को यूँ मिली
दिल ने भी दी दस्तक और लब हिलने लगे
कहा सब जो, बस अब तक न कहा था
आँखों की जुबान से बस जो ब्यान था
नम आँखों का भी जैसे अब सब्र टूट गया
अन्दर था जो समेटा,अब समुन्दर बन गया
सन्नाटा या तूफान,फिर भी सुकून है मुझे
दूर थी बहुत, फिर भी मंजिल मिल गयी...

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