Thursday, November 11, 2010

"kya kahen"


भूल गए वो कहानी तो कोई बात नहीं
भूली दास्तान फिर याद आये तो क्या कहें
दूर निकल आये कदम, वो रास्ता कठिन था
मुड़ के देखा और मंजिल नज़र आये तो क्या कहें
यकीन था इस दिल को की किनारा ही हमसफ़र है
फिर भवर में गिर चले तो क्या कहें
उंगली ने रेत पे जो बनाई थी तस्वीर,लहरों ने मिटा दी तो कोई बात नहीं
जब लहरों में वो तस्वीर नज़र आये तो क्या कहें
गर्दिश में तो यूँ ही छलक जाते हैं आंसू
ख़ुशी में भी ये अश्क छलक जाएँ तो क्या कहें
नजदीक न सही, न देख पायें तो कोई बात नहीं
पास न होकर सामने आ जाएँ तो क्या कहें.....

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