Sunday, October 16, 2011


"आइना दिल का"

सुना था आंखें हैं आइना दिल का...
फिर राज़े-दिल बयान करना मुश्किल क्यों है...
सोचा था दिखता है जहाँ इनमे...
फिर खामोश लबों का इशारा पड़ पाना मुश्किल क्यों है...
बाखूब खूबी से जस्बात छुपाने की आदत है इन्हें...
फिर भी एक झलक नज़ारे की दे जाती हैं आंखें...
अनकही बातें मगरूर लबों से थिरकती हुई उतरती हैं दिल में...
दिल से आँखों में...
तो फिर पलकों पर इन्हें संभाल पाना मुश्किल क्यों है...
यूँ तो बेजुबान खामोश रहती हैं आंखें...
लेकिन रूह से पड़ पाओ तो सब कहती हैं आंखें...

"आइना दिल का"

सुना था आंखें हैं आइना दिल का...
फिर राज़े-दिल बयान करना मुश्किल क्यों है...
सोचा था दिखता है जहाँ इनमे...
फिर खामोश लबों का इशारा पड़ पाना मुश्किल क्यों है...
बाखूब खूबी से जस्बात छुपाने की आदत है इन्हें...
फिर भी एक झलक नज़ारे की दे जाती हैं आंखें...
अनकही बातें मगरूर लबों से थिरकती हुई उतरती हैं दिल में...
दिल से आँखों में...
तो फिर पलकों पर इन्हें संभाल पाना मुश्किल क्यों है...
यूँ तो बेजुबान खामोश रहती हैं आंखें...
लेकिन रूह से पड़ पाओ तो सब कहती हैं आंखें...

Friday, August 26, 2011


जब अपने आप को और अपने ख्यालों को तनहा पाया...
वही चेहरा, हमसाया बन सामने आया...
खो जाना चाहा जब गहरी तनहाइयों में...
उसकी यादों के मेले में खुदको को घिरा पाया...
ख़ामोशी की चाह में जा बैठे थे हम अकेले...
अकेले होकर भी, उस से जुदा हो पाना, नामुमकिन पाया...
हाथ बढाकर जब उन मुस्कुराते लबों को छूना चाहा...
हवा में महक और खुद में दौड़ता जूनून पाया...
भूल गए थे शायद हम उसकी बातों का असर...
भूल जाने के बाद भी अपने वजूद में उसका वजूद पाया...
हो सकता था,उन् लम्हों से जुड़ा था आज भी ये सफ़र...
रास्ता खो जाने के बाद भी, मंजिल पी उसको खड़ा पाया...

Thursday, July 21, 2011

" उड़ान "
इन बहकती फिज़ाओं में खो जाना चाहता है...
हर पल, इस पल, जीना चाहता है दिल,
अपने दायरों की ख़ामोशी से, उन तुफानो की गरज में मिल जाना चाहता है...
गहरे सन्नाटों से निकल,मीलों लम्बी तनहाइयों में रह गुज़र करना चाहता है दिल,
छोड़ के दुनिया का मेला, गहरी मदहोशियों को गले लगाना चाहता है ...
उठा के हाथ अपने, उस आसमान को फिर छूना चाहता है दिल,
तोड़ के सब पहरे,ऊंची उड़ान भरना चाहता है...
हर पल,एक पल, इस पल जीना चाहता है दिल...

Wednesday, July 6, 2011

"ऐतबार"
हर बार अपने ही अंदाज़ में वो हमे समझाते रहे...
नासमझ है फिर भी दिल उनकी तो सुनता ही रहा...
समझ जब न आई तदबीर...
तो तकदीर समझ , वो अपनी ...
उन अश्कों के बीच यूँ ही हँसता भी रहा...
कह दिया था उन्हों ने कभी...
कभी तो ऐतबार हम पर करो...
इसी वायदे - ऐतबार के सहारे , ये वक़्त यूँ ही कटता भी रहा...
वही उम्मीद और बैठे बैठे यूँ ही हसने और रोने की ताबीर...
ये सब वो छोड़ गया, जब गया...
और हमने भी क़ैद कर ली यादें...
समझ उनकी ही जागीर...
जिद्द थी हमे भी बस ,न ऐतबार ये कभी कम होगा...
किया था जो वायदा , अब साथ ही दफ़न होगा...
सोचते हैं जब, ये लब आज भी मुस्कुराते हैं...
ये गेसू उनके काँधे पे...
बिखर जाने को, आज भी मचलाते हैं...
शायद वो वायदा , वो ऐतबार एक भ्रम ही सही...
हम अपनी ज़िन्दगी, आज फिर दाव पर लगते हैं...

Tuesday, May 3, 2011

तुम हमे याद न आओ तो कोई बात नहीं
याद आये और तुम न आओ तो मुश्किल होगी...
वो दिन,वो पल लौट के न आयें तो कोई बात नहीं
उन पलों में हम खो जाएँ जो मुश्किल होगी...
दर्पण में देखूं अपना चेहरा, और चेहरा तुम्हारा दिखे तो कोई बात नहीं
तुम्हारे अक्स में अपनी परछाई दिखे तो मुश्किल होगी....
ख्यालों की दुनिया में बह जाऊं तो कोई बात नहीं
भरी महफ़िल में ये लब कम्प्कपायें तो मुश्किल होगी...
रात करवट में गुज़र जाए तो कोई बात नहीं
खुली आंख में तस्वीर दिखे तो मुश्किल होगी...
मेरे सफ़र में हमसफ़र न बन पाए तो कोई बात नहीं
सफ़र खत्म होने पे न आये तो मुश्किल होगी...
तुम हमे याद न आओ तो कोई बात नहीं
याद आये और तुम न आओ तो मुश्किल होगी...
वो दिन,वो पल लौट के न आयें तो कोई बात नहीं
उन पलों में हम खो जाएँ जो मुश्किल होगी...
दर्पण में देखूं अपना चेहरा, और चेहरा तुम्हारा दिखे तो कोई बात नहीं
तुम्हारे अक्स में अपनी परछाई दिखे तो मुश्किल होगी....
ख्यालों की दुनिया में बह जाऊं तो कोई बात नहीं
भरी महफ़िल में ये लब कम्प्कपायें तो मुश्किल होगी...
रात करवट में गुज़र जाए तो कोई बात नहीं
खुली आंख में तस्वीर दिखे तो मुश्किल होगी...
मेरे सफ़र में हमसफ़र न बन पाए तो कोई बात नहीं
सफ़र खत्म होने पे न आये तो मुश्किल होगी...